". मुद्रा एवं साख ~ Rajasthan Preparation

मुद्रा एवं साख


मुद्रा एवं साख

मुद्रा के आधुनिक रूप

करेंसी

मुद्रा के आधुनिक रूपों में करेंसी कागज़ के नोट और सिक्के शामिल हैं, आधुनिक मुद्रा बहुमूल्य धातुओं जैसे सोना-चाँदी और ताँबे के बने सिक्कों से नहीं बनी है।

भारत में भारतीय रिज़र्व बैंक केंद्रीय सरकार की तरफ से करेंसी नोट जारी करता है। भारतीय कानून के अनुसार, किसी व्यक्ति या संस्था को मुद्रा जारी करने की इजाजत नहीं है। इसके अलावा कानून विनिमय के माध्यम के रूप में रुपये का इस्तेमाल करने की वैधता प्रदान करता है।

साख 

ऋण (उधार) से हमारा तात्पर्य एक सहमति से है जहाँ साहूकार कर्जदार को धन, वस्तुएँ या सेवाएँ मुहैया कराता है और बदले में भविष्य में कर्जदार से भुगतान करने का वादा लेता है।

ऋण की शर्तें

हर ऋण समझौते में ब्याज दर निश्चित कर दी जाती है, जिसे कर्जदार महाजन को मूल रकम साथ अदा करता है। 

उधारदाता कोई समर्थक ऋणाधार (गिरवी रखने के लिए) की माँग कर सकता है, यदि कर्जदार उधार वापस नहीं कर पाता, तो उधारदाता को भुगतान प्राप्ति के लिए संपत्ति या समर्थक ऋणाधार बेचने का अधिकार होता है।

ऋण के क्षेत्रक 

औपचारिक क्षेत्रक - इसमे बैंक एवं सहकारी समितियां सम्मिलित है।

अनौपचारिक क्षेत्रक- इसमे साहुकार, व्यापारी, रिश्तेदार, मित्र आदी सम्मिलित है।

स्वयं सहायता समूह 

हाल के वर्षों में, लोगों ने गरीबों को उधार देने के कुछ नए तरीके अपनाने की कोशिश की है। इन में से एक विचार ग्रामीण क्षेत्रों के गरीबों विशेषकर महिलाओं को छोटे-छोटे स्वयं सहायता समूहों में संगठित करने और उनकी बचत पूँजी को एकत्रित करने पर आधारित है। एक विशेष स्वयं सहायता समूह में एक-दूसरे के पड़ोसी 15-20 सदस्य होते हैं, जो नियमित रूप से मिलते हैं और बचत करते हैं। प्रति व्यक्ति बचत 25 रुपए से लेकर 100 रुपए या अधिक हो सकती है। यह परिवारों की बचत करने की क्षमता पर निर्भर करता है । सदस्य अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए छोटे कर्ज समूह से ही कर्ज ले सकते हैं। समूह इन कर्ज़ी पर ब्याज लेता है लेकिन यह साहूकार द्वारा लिए जाने वाले ब्याज से कम होता है। एक या दो वर्षों के बाद, अगर समूह नियमित रूप से बचत करता है, तो समूह बैंक से ऋण लेने के योग्य हो जाता है। ऋण समूह के नाम पर दिया जाता है और इसका मकसद सदस्यों के लिए स्वरोजगार के अवसरों का सृजन करना है।

इस ऋण को लौटाने की ज़िम्मेदारी भी समूह की होती है। एक भी सदस्य अगर ऋण वापस नहीं लौटाता तो समूह के अन्य सदस्य इस मामले को गंभीरता से लेते हैं। इसी कारण, बैंक निर्धन महिलाओं को ऋण देने के लिए तैयार हो जाते हैं। जब वे अपने को स्वयं सहायता समूहों में संगठित कर लेती हैं, यद्यपि उनके पास कोई ऋणाधार नहीं होता।

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